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7 मई रविवार विश्व हास्य दिवस पर सत्यास्मि मिशन की हास्य स्मरण कविता शुभकामनाएं:

द्धंद ईर्ष्या लोभ के कारण
भूल चुके मुस्कराना भी।
ओढ़ मुखोटे मुस्कान झूठ के
खुल कर हंसना लगे बचकाना भी।।
लकीर बनी मुस्कान होंटो पे
और ऊँगली से बजती ताली।
ठठाके तो विस्मर्त हो गए
हंसी छोड़ती नही छाप लाली।।
परिपक हो गए बच्चों के चहरे
जवानों पर अनुभव छाया।
बुजुर्गो पे चिंता परछाई
आज लुप्त हंसी बन बची है छाया।।
अनजानी सी आँखे है सबकी
अचानक समृति मानो लौटे।
पहचानी सी सूरत है कोई
आँखे सिकुड़ पहचान समेटे।।
यूँ आज कृतिम हास्य दिवस मनाते
हंसो हँसाओ हंस हंस कर नकली।
नकली बने हंस हंस कर असली
नकली हंसी ने पकड़ समाज कसली।।
नकली हंसी से हंस हंस थक कर
चलते अपने घर अपने काम।
हंसी भी एक व्यायाम बन गयी
हास्य योग बन विश्व आयाम।।
कुछ से ना तो कुछ है अच्छा
चलो इसे ही हम अपनाये।
स्मरण मंथित कर झूठी हंसी से
निकाल सच्ची हंसी खिलखिलाएं।।
आज दर्पण को केवल देखो
और करना आँकलन उस चेहरे का।
ढूंढने की नही पड़े जरूरत
आत्मा विहीन उस चहरे का।।
आज खिंचवाना अपना फोटो
जैसा भी मुस्कराया हो।
उसे टाँग दो ड्राइंग रुम सामने
जो हर द्रष्टि तुम आया हो।।
जल्दी बहुत पता चल जाये
है तुममें कितनी स्वयंभू मुस्कान।
हरेक माह खींचना फोटो
उसे लगाना बराबर क्रम विधान।।
बढ़ती चलेगी मुस्कान तुम्हारी
और फोटो होगा एक ही शेष।
और आगे ये भी नही होगा
केवल तुम होंगे मुस्कान ले शेष।

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