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भक्त को प्रेत व सिद्धात्मा दर्शन और उसका सही उपयोग नही कर पाने से सिद्धि की समाप्ति


ये बहुत पुरानी लगभग सन् 1992-93 की बात है की मेरे छोटे भाई के एक गहरे मित्र मंजीत जो वर्तमान में एक प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य और शिवशक्ति पीठाधीश्वर भी है और उसकी बहिन अरुणा जो अपनी सुसराल जिला अलीगढ़ में सरकारी जूनियर विद्यालय में अध्यापक और सुखी ग्रहस्थ जीवन व्यतीत कर रही है उससे सम्बंधित ये घटना है की तब मैं मंगलवार को उनके यहाँ चला जाता था और सभी एकत्र होकर अपने धर्म प्रश्नो का समाधान मुझसे सत्संग ज्ञान द्धारा प्राप्त करते थे इनके पिता जी धर्मपाल सिंह एक इंटरकालिज में हिंदी के अध्यापक और अपने गांव बिचोला के पास अनूपशहर आश्रम में श्री गुरु सोहम बाबा से बचपन में ही दीक्षा प्राप्त करते हुये और भी उस कालीन सन्तों जैसे-हरिहर बाबा,उड़िया बाबा,रमेशचंद्रानन्द,कमलानंद आदि से जुड़े हुए कृपा पात्र थे वे भी अपने सन्तों के संगत से प्राप्त ज्ञान और अनुभूतियों के विषय में बताते और पूछते थे तब मैं उनके घर जाता था तो मैं सामान्य सामाजिक वेशभूषा में ही रहता था परन्तु उन्हें लगता था की सिद्ध,महात्मा,संतों की वेशभूषा गैरिक वस्त्रधारी और भिन्नता प्रधान आचरण युक्त होती है यो उन्हें मेरी अन्तरपरिपूर्ण अवस्था का ज्ञान नही था तो उन्होंने एक दिन एक महात्मा का पद्मासन में लंगोट में बैठी पुरानी फोटो को दिखाते पूछा की इनके विषय में आप क्या कहतें है क्या इनकी मुक्ति हुयी या नही? मैं उन् महात्मा को देखते बोला इनकी मुक्ति नही हुयी ये अभी सूक्ष्म अवस्था में शापित है उन्हें ये सुन बहुत बुरा सा अनुभव हुआ यो प्रतिकार करते बोले की ये बड़े सिद्ध महात्मा कमलानंद जी है जो जहाँ चाहे प्रकट होते आदि सिद्धि सम्पन्न थे मेरे बड़े प्रिय थे और तुम कह रहे हो की इनकी मुक्ति नही हुयी मैं बोला मुझे जो अंतज्ञान है वही कहा है अब वे खिन्न से होकर बैठक से उठ अपने कार्य करने चले गए सत्संग चला तब आध्यात्मिक संसार में सूक्ष्म सत्ताओं और प्रेतवाद और उनके आवाहन की चर्चा चली मेने अपने अनुभव बताये की और प्लेंचिट् की विधि तरीके से बताई और तब मेने संकल्प किया यहां कोई भी आत्मा हो वो इन्हें अनुभत हो और चाय आदि पीकर वहाँ से चला आया तब प्रातः के समय मंजीत और उसकी बहिन अरुणा जल्दी से मेरे पास आये और रात्रि का आश्चर्यचकित और उनके लिए डरावना प्रत्यक्ष प्रेत और सिद्धानुभव बताया की आपके जाने के बाद अरुणा ने अपने चाचा के लड़के यजवेंद्र के साथ पेन्सिलों के साथ अपने आसपास की किसी परिजन आत्मा को आवाहन किया तब तो कुछ विशेष नही हुआ तब सबके सोने के समय अपनी माता के पास एक बेड पर साथ सोते हुए अरुणा को लगा की कोई उसके पास लेटा साँस ले रहा है इससे उसे जगर्ति हुयी तो उसने देखा की एक चिन्मयकोशों से निर्मित पूरी लम्बाई लिए एक पारदर्शी व्यक्ति उसकी और देखता लेता है वो उसे देख घबराई और ज्यों ही चिल्लाने को हुयी उस चिन्मयी प्राणी ने उसके माथे पर अपना हाथ रखते हुए कहा की अरे अरुणा मैं तेरा कंचन दादा हूँ तेरे दादा जी का भाई मुझसे डर मत ये फिर भी चीखने को हुयी तो उसके रखे हाथ और प्रभाव से तुरन्त मूर्छा को प्राप्त होकर सीधे अपने गांव को अपनी द्रष्टि से देखने लगी की वहाँ बाग़ और ट्यूवेल है उसके पास एक मट्टी की समाधि सी है और परिवार के लोग पूजा सामग्री लेकर जाते में सोच रहे है की स्वामी जी यानि मेरे ने पितरो की शांति कृपा को ये पूजापाठ बताई है पता नही लाभ भी होगा या नही ये विचार अंतर्मन में लिए सब पूजा को जा रहे है ये संशय विचारों को देख वो समाधि में से वही आत्मा कंचन दादा क्रोधित हुए और वहाँ बबंडर तूफान सा आ गया फिर सबने माफ़ी मांगी तब शांत हुए इसी द्रश्य अनुभूति के साथ अरुणा पुनः वापस बेड पर लेटी और उन्हीं चिन्मय आत्मा को अपने हाथ के स्पर्श के साथ यथावत देखती है तब वे कहते है की मैं तेरी पढ़ाई कविता आदि में बहुत साहयता करूँगा तू डर और चिल्ला और किसी को बताना मत पर अरुणा डर से चिल्ला उठी और वो चिन्मय मूर्ति अद्रश्य हो गयी सब जाग गए और उससे पूछने लगे उसने जो स्थान बताया वो वहाँ कभी नही गयी थी पर वो सत्य था ये सुन कर सब स्तब्ध थे और प्रातः दोनों मेरे पास आये की इनसे मुझे छुड़ाओ मैं इन्हें नही देखना चाहती ये सुन पहले तो मेने उसे अभय किया और फिर हमने चाय पी और तब मेने चिंतन करते हुए संकल्प किया की इसे जो भी कोई चिन्मय आत्मा है वो नही दिखे और उसे वापस ये कहते हुए की कल मैं घर आऊंगा उन्हें भेज दिया और मैं अपने दैनिक कार्यों में लग गया तब मैं अगले दिन शाम के समय उनके यहाँ पहुँचा तो अरुणा स्नान करके निकली थी की मेरी आवाज सुन की मंजीत..एक दम से स्तब्ध सी हो गयी और भाग कर अंदर गयी कुछ देर बाद मेरे बैठक में पहुँचने के और सबके उपरान्त आई बोली आज बड़ा ही आश्चर्य अनुभव हुआ की मैने आपके यहाँ से वापस आने के उपरांत रात्रि में अपने कानों में सुना की कोई बोला की देख आज स्वामी जी आएंगे तब तू ये कपड़े पहने होगी ये सुन मैं बोली की स्वामी जी ने तो इन्हें दिखने को मना किया था तब ये कैसे सुनाई आ रहे है वो डरी सी हो गयी तब वो बोले की दिखने को ही तो मना किया था सुनाई आने को मना नही किया और मेने वो कपड़े अलग उठा कर रख दिए थे की इन्हें नही पहनूँगी और भूल गयी ठीक आपकी आवाज सुन मेने देखा की मैं अनजाने में ठीक वही कपड़े ले आई थी और पहने थी तब उसने फिर प्रार्थना की की ये अब सुनाई भी नही आये मैं इस पचड़े में भी पड़ना चाहती मैने बहुत समझाया की ऐसी शक्ति तो मुझे भी नही मिली और ना ही अच्छे अच्छे साधक को दुनियाँ भर की तन्त्र मंत्र आदि की श्मशान साधना के उपरांत भी नहीं मिलती है तुझे तेरे प्रारब्ध से मेरे द्धारा मिल गयी है इसे इतना ही बनाये रख और ये तेरे पितृ है ये हानि नही लाभ ही पहुँचायेंगे पर वो भी मानी और तब मेने पुनः वही बैठे बैठे मन में ध्यान करते हुए संकल्प किया की जो भी ये शक्ति है अब अपने लोक को जाये इसे नही दिखे न सुनाई आये और फिर उसे नही दिखी परन्तु इसके उपरांत उसने एक दिन कहा की मुझे लेखन करने के लिए ऐसी कुछ प्रेरक शक्ति दो तब मैं बोला की तू एक पैन और कागज लेकर शांत मन से एकांत में बैठ जाना और अपने को शून्य करते हुए एक आकाश का अनुभव करते हुए प्रेरक सिद्ध महात्मा की आत्मा का आवाहन करना वो तेरे ऊपर कृपा करेंगे तब उसने एकांत में रात्रि को अपने यहां जो कमलानंद महात्मा थे उन्हीं का आवाहन किया और उसकी कलम हिली और स्वामी जी को नमस्कार करते लिखा की मैं कमलानंद हूँ और अपने विषय में बताया की मैंने सूक्ष्म जगत में प्रवेश के लिए बहुत प्रयत्न किये पर उसमे प्रवेश नही कर पाया तब बड़ी निराशा में मेने विचार किया की मैं जहर खा लेता हूँ और जब मेरा सूक्ष्म शरीर इस स्थूल देह को त्यागेगा तब मैं चैतन्य बना उस सूक्ष्म जगत को देख अनुभूत करता उसमे प्रवेश करूँगा और उसके रहस्यों को जान अधिकार करूँगा परन्तु ऐसा नही हुआ मैं विष के प्रभाव के कारण मूर्च्छा को प्राप्त होकर शापित जगत में बन्धन में हूँ स्वामी का ध्यन्यवाद है की मैं उनके कारण अपने इस कृपापात्र परिवार के सम्पर्क में आया हूँ और इच्छा है ये सब मेरे लिए अपने पूजघर में एक सवतंत्र स्थान देते हुए इतनी संख्या में मंत्र जप कर दे तो मेरी नवीन जन्म हेतु मुक्ति हो जायेगी ये सब पढ़कर कर अरुणा के पिताजी को मेरे उस पूर्व कथन पर विश्वास हुआ की ये महात्मा मुक्त नही हुए है उन्होंने कहा की आप मेरे शरीर में आ जाये तो वे लेखन के मध्यम से बोले की धर्मपाल तू हठी है यो मेरा तेरे शरीर से सम्पर्क नही होगा और मैं इस कन्या स्त्री शरीर में भी असहज अनुभव करता हूँ पर ये श्रद्धालु और सहज है यो मुक्ति को इससे सम्पर्क में हूँ ये सब पढ़कर उन्हें और विश्वास हुआ की कोई भी संस्कारी पुत्री अपने पिता को इस तरहां से नही लिख बोल सकती है आगे चलकर मेरे अनुसार उन्होंने उन्हें पूजाघर में शुद्ध लोटे पर लाल वस्त्र में लिपट कर एक नारियल को रख कर उतनी संख्या में जप किये और उन्हें मुक्ति मिली इधर समयानुसार मेने सभी जगह जाना बन्द कर दिया था और अरुणा का विवाह एकलौते लड़के पी.डब्ल्यू.विभाग में इंजीनयर से हो गया और टीचिंग में भी लग गयी उसके पति ने ये सब बुलाने पर आपत्ति की तब मेरे से संपर्क भी समाप्त हो चला था और ये प्रकरण भी वहीं पर समाप्त हो गया था। इससे भक्तों को ये ज्ञान मिलेगा की योगी के केवल संकल्प में कितनी शक्ति है और कृपालु होने पर क्या क्या अद्धभुत आश्चर्य जगत के वशीभूत दर्शन होते है और पुर्जन्मों का किस तरहां पुण्यबल मिलता है जिसे सम्भल नही पाने से पुनः एक सामान्य जीवन जीते हुए जीवन कटता है यो सदा गुरु कृपा को अपने जीवन में बनाये रखने को बड़ी महनत है और वो केवल गुरु की आज्ञा पालन करने से ही सहज प्राप्त होती है और अवज्ञा अवहेलना से सब कुछ नष्ट हो जाता है।आगामी लेख में अन्य भक्त के विषय में जानेगे।
(उपरोक्त चित्र स्वामी जी के द्धारा कराये गए योग कार्यक्रमों से लिए गए है जिनमें ये सब भक्त कार्यकर्ता रहे)
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