No comments yet

प्रत्यक्ष गुरु अनुसार ही साधना करो अन्यथा साधक विक्षिप्त हो जाता है

ये भक्त संजय सक्सेना जो तब आजाद प्रिंटिंग प्रेस की बिल्डिंग में ऊपर रहता था बहिन सपना पिता हाइडिल आगरा में सर्विस करते और इसकी माता प्राइवेट स्कुल में टीचर व् ट्यूशन पढ़ाती थी बाद में आवास विकास में रहने लगे ये भक्त उस समय तंत्र मंत्र का बहुत अभ्यास करता था उसने डॉ नारायणदत्त श्रीमाली से दीक्षा और उनकी पुस्तकों अनुसार सामग्री माँगा कर साधना करता मेरे से इसका परिचय किसी अन्य परिवार राहुल सिंह जो आशीर्वाद से बाद में दिल्ली पुलिस में इस्पेक्टर हो गया के यहाँ से हुआ यो इसके यहाँ मेरा ज्ञान सत्संग होता एक बार ये बोला की मुझे रात्रि में श्मशान साधना करनी है कैसे जाऊ आप मेरी साहयता करें मैं बोला यदि तुझे कुछ हो गया तो तेरी साहयता कौन करेगा ये तू पढ़कर और जोधपुर जाकर साधना सीख आता है उन्ही गुरु जी से कराने को कह वे ही रक्षा करेंगे ये बोला वहाँ केवल शिविर में बताते है श्मशान साधना कराते नही मुझे करनी है आपने सब करी है मुझे पता है यो आप साहयता क्रौन मैं बोला ठीक है पहले तू दिन में जाया कर ताकि धीरे से अभ्यास बढ़े और तेरा शरीर श्मशान साधना के तमगुण को स्वीकारें यो परसो चौदस है तब चलेंगे तब वो तंत्र सामान लेकर मेरे साथ काली नदी के पास बने श्मशान में भरी दोपहरी को गया मैं बोला तू जहाँ अभी रात्रि में चिता जली है वहाँ टीन के नीचे बैठ अपनी पूजा कर और मैं इतने उधर शिवलिंग के पास बैठ ध्यान लगता हूँ मैं पास के नल से पानी ले शिवलिंग पर जल चढ़ाया और वहाँ बैठने का स्थान नही था यो उसीके पास दक्षिण दिशा में मुख कर ध्यानस्थ हो गया बाद में सक्सेना आया बोला हाँ गुरु जी हो गयी मेरी पूजा चले मैं उठा तब मेरे सिर के आसपास और कानों में एक शून्य की सी विचित्र ध्वनि हो रही थी और मन शून्य था और हम शहर की और श्मशान के कच्चे रास्ते से चले वो मेरे पीछे था तभी काली नदी की और से एक व्यक्ति हमारे पास आकर बोला की भई क्या टाइम हुआ है? सक्सेना के हाथ में घड़ी थी वो उसमे देखने को हुआ इतने मैरे मुँह से निकला एक बजकर आठ मिनट बारह सेकंड उधर सक्सेना ने इसके उपरांत केवल एक बज गया है बोला और दोनों व्यक्ति आश्चर्य में थे की इनके हाथ में घड़ी नही है बिन देखे ये कैसे बोल रहे है? मैं चलता रहा उस शून्य ध्वनि से घिरा जब हम पैदल सडक पर चलते सब्जी मंडी पर आ गए थे तबतक मुझे ऐसा ही लगता रहा की जो कोई मेरे आसपास चलता व्यक्ति प्रश्न सोच रहा था वो उसका उत्तर मुझे ज्ञात है उसे बोल दूँ फिर कुछ समय बाद ये अवस्था टूट गयी उसके घर आते चाय पीने तक मैं सामन्य हो गया सक्सेना पूछने लगा की मुझे इतना करने पर भी कोई आभास नही हो रहा मुझे कुछ बोलते नही देख फिर बोला आप तो पूर्व ही सिद्ध हो एक बार इसके घर योगी के कहीं भी दिव्यदेह से किसी भी स्थान पर निर्बद्ध प्रवेश करने की चर्चा चल रही थी मैं बता रहा था की जब सूक्ष्म और स्थूल शरीर यानि तन और मन एक हो जाते है तब ये अवस्था प्राप्त होती है क्योकि आत्मा की इच्छा का नाम मन है और मन से ये मायाविक संसार और शरीर बना है यो ये सब मन के सम्पूर्ण जाग्रत होने पर यानि मन में लगभग कोई द्धंद नही रहने पर सूक्ष्म शरीर प्रकाश यानि सतगुण प्रधान बनकर प्रकाशित हो उठता है जेसे हम ध्यान करते है तो हमे कभी कभी प्रकाश दीखता है और जब यही प्रकाश खुली और बंद आँखों से ध्यान मुद्रा में बैठते ही दिखने लगे तब ये तन चाहे बाहर से कितना ही भारी या पतला दीखता हो परन्तु वो हल्का हो सूक्ष्म हो जाता है यो उसपर प्रकर्ति का बन्धन नही रह जाता प्रकर्ति के तमगुण के बन्धन से मुक्ति पाकर रजगुण जो केवल क्रिया शक्ति उसे अपनाता हुआ यहाँ रजगुण वो गुण शक्ति है जो आप गुरु प्रदत्त योग क्रिया व् मन्त्र जप क्रिया करते है रजगुण तम् और सतगुण की मध्य अवस्था है यहीं समस्त संघर्ष यानि भोग और योग होता और मिलता है यो साधक केवल दो गुणों में ही वास करता है तम् यानि आकर्षण शक्ति पुरुष प्रधान शक्ति और सत् यानि स्त्री प्रधान विकर्षण शक्ति यो जब साधक इन दोनों गुणों के मध्य शक्ति में जिसे क्रियायोग कहते है उसमें निरन्तर लीन रहता है तब वो इन दोनों गुणों यानि ना वो आकर्षण के बन्धन में है ना वो विकर्षण के बन्धन में है यो योगी दोनों द्वन्दों से मुक्त है यही प्रकर्ति विजय कहलाती है तब वो केवल मन के रचे संसार में और इस मन संसार से परे आत्मा में बना रहता है यो वो सूक्ष्म और अति सूक्ष्म और सुक्षमातीत अवस्था तीनो में एक साथ बना रहता है इसके लिए सभी मांगो यानि धन मांगना किसी से प्रेम मांगना आदि सबसे परे रहना चाहिए तब माया यानि प्रकर्ति के बन्धन से मुक्ति अभ्यास का प्रारम्भ होता है यो कोई योगी संसारी सामग्री से परे रहते है उनका अधिक संचय नही करते यही अपरिग्रह और अस्तेय है यो ये सब गूढ़ विषय उनकी समझ से परे था तब मैं उनके यहाँ से अपने घर चला आया तब मैं इसी विषय पर विचार करता ये चिंतन करने लगा की मुझे सभी रहस्य क्यों पता है मुझे तो ऐसा कुछ आभास नही होता है? तब मैं देवी का सर्व बाँधा..मंत्र का अखण्ड अजपा जप करता था उसी को जपता और सक्सेना के साथ वार्ता विचार को चिंतनशील होकर निंद्रागमन हो गया तब मेने अनुभव किया है की मैं उसे स्पष्ट चदर तान बीच के बैठक में अकेले सोता देख रहा हूँ उसके सिरहाने खड़ा हूँ आदि आदि जो स्मरण नही रहे और फिर पता नही चला आगामी कुछ दिन बाद में कृषि के काम गांव से निपटाकर उसके घर पहुँचा वो बोला की मैं तो अगले ही दिन आपके घर गया था आप गांव गए तो यो लौट आया बड़ा ही आश्चर्य अनुभव हुआ की मुझे लगा की अपने मुझे आवाज दी सजंय फिर सक्सेना तब मैं जगा और आश्चर्य में आ गया की आप दूधिया प्रकाशयुक्त मेरे पायते खड़े हो और अपने मेरा पैर का अंगूठा पकड़ हिलाया था जिससे मुझे चैतन्यता हुयी थी और मैं विचार करने लगा की ये कैसे इतनी रात्रि और बंद दरवाजे से अंदर मेरे पास आ गये? बस तभी आप वहीं खड़े हुए ही विलीन हो गए मैं उठ बैठा फिर दोपहर की सूक्ष्म शरीर यात्रा के विषय में चिंतन को स्मरण करता की ये इन्होंने प्रमाणिक तौर पर दिखाया है की ऐसा कहते नही वास्तव में होता है आगे चलकर ये भक्त इन्हीं तंत्र मंत्र यंत्र के चक्करों में मना करने पर भी एक विक्षिप्त अवस्था को प्राप्त हो गया था इसकी बहिन सपना के विवाह में धन की साहयता करने पर वापस समय पर नही लोटा पाने पर और कई महीनों बाद कुछ कुछ करके मेरे यहीं आकर ये वापस करता गया था मेने इनके यहाँ अपनी व्यस्तता और वृति के कारण जाना बंद कर दिया था यो ये और भी अपराधबोध अनुभव करने लगा इसके परिवार के लोग विचार करने लगे की मैने इस पर कुछ तंत्र कर दिया है यो इनके यहाँ फिर मैं नही गया इसकी मम्मी रोडवेज पर गद्दी लगाने वाले जो फोटोग्राफी दुकान भी चलाते थे उनकी शनिवार की गद्दी पर जाती थी वे बड़ी प्रसंसा करती की वहाँ भुत खेलते है एक बार मैं सक्सेना के साथ उनके दरबार में एक रूपये की पर्ची कटा कर गया और सबसे पीछे बैठ गए उस समय मेरी अनेक भविष्यवाणियां अमरउजाला देनिकजागरण आदि में प्रकाशित हो प्रमाणित हो चुकी थी और दिल्ली पूसा में इसी विषय में भक्तों के यहां आता जाता था तब बिन अहं के मैं वहां बैठा और होना भी यही चाहिए आप जहाँ जा रहे हो वहाँ किस उद्धेश्य से जा रहे हो विद्यादर्शन को यो विद्यादर्शन तभी होगा जब अहं नही होगा अन्यथा अहं ही लेकर खाली लौटोगे तब वहां देखा की वे मध्यायु से अधिक के सज्जन पुरुष गद्दी पर आकर बेठे वहाँ साइड में उनके गुरु का बड़ा चित्र लगा था और एक व्यक्ति भभूति और काली मिर्च एक पुड़िया में बांधता बैठा था पीछे हनुमान की मूर्ति फोटो थी तब भक्तजी ने जप किया और कुछ साँस सा हिचकी ले खिंचा और तन कर बैठ गए और पीड़ित लोग अपने अपने नम्बर से उनके सामने जाकर खड़े होते वे पूछते हां क्या समस्या है लोग बताते वे सुनकर फूँक मारते आशीर्वाद देते एक भभूति की पुड़िया उसे पानी के साथ खाने नहाने के पानी में डालकर नहाने या समस्या ग्रस्त स्थान दुकान व् घर में देते समय बताते की आगामी समय आना ऐसे ही चलता रहा हमे रात्रि हो गयी कोई भुत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति आदि के दर्शन नही हुए और हम फिर वे बीच बीच में उठकर टहल आते तब उनके कुछ प्रिय भक्त उनसे अलग बातें करते जब वे गद्दी पर थे एक लड़का तेजी से सीधा उनके पास पहुँचा उसने उनके कान में बात कही दो पुड़िया लेकर चला गया अब हमारा नम्बर आया मेरे से पूछा की क्या नाम है और क्या समस्या है मैं तुरन्त विचार करने लगा की भई मेरी हनुमान पूजा तो व्यर्थ ही गयी बताओं हनुमान जी को मेरा नाम भी नही पता अभी भक्तों की लिस्ट में नही हूँ मेने उन्हें नाम बताया और बोला की मेरा ध्यान और बढ़े यो उपाय बताओ मुझे भभूति देते बोले इसे नित्य माथे पर लगा ध्यान करना मैं उन्हें नमन कर घर चला आया और ऐसे ही श्रद्धा से भभूति लगा ध्यान किया कोई प्रभाव नही हुआ आगामी शनिवार को नही जा पाया फिर मेने एक भक्त चितवन वर्मा लकी को अपनी भविष्यवाणियों की फोटोकॉपी देकर उनकी दुकान पर भेजा की ये आपसे मिलना चाहते है उन्हें देख वे संकुचित से होकर बोले भी की मैं तो कुछ नही जानता जब गद्दी पर गुरु व् इष्ट कृपा से बैठता हूँ जो उत्तर आता है वही बोलता हूँ और मुझे कही फोटोग्राफी के विषय में जाना है कह चले गए तब मैं वहाँ जा ही नही पाया ऐसे ही मेने अनेक देवी देवों की गद्दियाँ लगाने वाले देखे सभी का यही हाल निकला वे सब केवल मनुष्य में उत्पन्न किसी भी कारण के तीर्व भावावेश ऊर्जा से विछिप्त होती मनोवर्ति के लोगों को या तो वहां के तेज स्वर में कीर्तन कराने से झुमवाते है उनके बाल पकड़ उन्हें बोलते रहते है तू कौन है बता वो पीड़ित व्यक्ति कहता है मैं ये हूँ वो हूँ उसे खुद समझ नही आता की वो कौन है तब उनके मन की दशा को उच्चतर करके उस निम्न मनोदशा से बाहर लाने के लिए वे ऐसे कठोर नियम बताते है की जिन्हें करने में ही व्यक्ति चालीस या तीन महीने तक बड़ा जागरूक होकर व्यस्त रहता है यदि इस समय भभूति नही खायी तो ठीक नही होऊंगा और किसी के घर का खाना नही,भूमि पर सोना,प्रसाद नही खाना,प्याज लहसुन नही खाना या सफेद रंग के सभी खाने की वस्तु नमक,दूध,दही,आदि आदित्याग देना या केवल छांछ पर रखना आदि जिन्हें करता हुआ भक्त स्वयं ही उस पूर्व मनोवर्ति से उभर ऊपर आ जाता है यो ठीक हो जाता है ये अच्छा मनोविज्ञान है और बहुत से ठीक नही होते है तो उन्हें बताये नियम में कमी करने का दोष देकर पुनः करने को कहते है अब रोगी उकता कर वहां से अन्य गद्दी पर जाता जाता या तो स्वयं नियमों को करते शुद्ध हो ठीक हो जाता है या विछिप्त हो ये विचार करता क बड़े ही पाप कर्म किये भगवान अभी छमा नही कर रहा यो शेष जीवन काटता है और इसने जयपुर से पत्राचार से इलक्ट्रोहोम्योपैथी का कोर्स कर घरेलू डाक्टरी और अपनी माँ पत्नी के साथ आवास विकास में छोटा स्कुल कोचिंग चला रहा था कुछ समय आया पर अब बहुत वर्षो से सम्पर्क नही है इस कथा से ये ज्ञान मिलता है की यो ही पत्रिकाओं से साधना नही करो और नाही उन लालच भरे शिवरों से मंत्र लाओ जहाँ ब्लेकबोर्ड पर मंत्र लिख उन्हें उतार कर केवक गुरु ने दिए है इस आस्वासन पर इतनी गम्भीर साधनाओं को बिन समझे करो अन्यथा विक्षिप्त और दुखी जीवन व्यतीत करोगे प्रत्क्षय गुरु और उसके व्यक्तिगत सानिध्य में ही रह कर या सम्पर्क में रहकर साधना वर्षों करने पर तब जाकर कहीँ सफलता मिलेगी ये भी प्रारब्ध ही होगा।
*�जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः?�*

Post a comment