No comments yet

हमें अपना जन्मदिन तारीख के अनुसार मनाना चाहिए या तिथि के अनुसार मनाना चाहिए…बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी..

हमें अपना जन्मदिन तारीख के अनुसार मनाना चाहिए या तिथि के अनुसार मनाना चाहिए…बता रहे है,स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी..

हम भारतीय संस्कर्ति में जन्मे है और हमारी वैदिक ज्योतिष विद्या ज्ञान जन्मदिन को उस दिन की अपेक्षा उस तिथि के अनुसार ही मानता है,की आप जन्मे तो इस तारीख या इस दिन ओर इस जन्म समय व इस वर्ष,पर आगामी वर्षो में आपके जन्मदिन को पढ़ने वाली वही तिथि आगे या पीछे होती रहेगी,यो आप देखेंगे कि-हमारे सभी भगवानों के अवतरण दिवस ओर महापुरुषों के लौकिक जन्मदिवसो को तिथि के अनुसार ही मनाया जाता है,जैसे आज 13 तारीख को भगवान श्री राम का जन्मदिवस है,ओर आज अष्टमी की प्रातः से दोपहर तक के बाद नवमी यानी रामनवमी भी पड़ेगी,यो श्री राम का जन्म नवमी तिथि को मनाया जाएगा।और ठीक ऐसे ही,वैसे तारीख के अनुसार मेरा जन्मदिन है-9 अप्रैल ओर जन्म तिथि चैत्र नवरात्रि की अष्टमी की प्रातः के बाद का जन्म है।यो जन्मदिन तो 9 अप्रैल ही रहेगा,पर उस दिन की तिथि अष्टमी,यानी जब भी चैत्र नवरात्रि आएगी,तब उसकी अष्टमी को पड़ने वाला दिन अलग होगा,जैसे आज 13 तारीख ओर दिन शनिवार है,यो इस या भविष्य में उस दिन सारे नक्षत्र आदि अलग होंगे,यो इस दिन की तिथि के अनुसार ही मेरी वर्ष जन्मकुंडली बनेगी ओर उसका भविष्यफल प्रभाव भी देगा।यो ही ठीक इसी दिन की तिथि को ही मेरा जन्मदिन की सही दिन ओर उसका सही समय ओर उसका प्रभाव भी सही रूप से मुझ पर होगा,क्योकि ठीक उसी तिथि वाले दिन को मेरे पूर्वजन्म के शेष पूण्य या पाप कर्मों का मुझमे तरंगित होकर प्रवेश होगा,जिसका अच्छा या बुरा फल मुझे उस तिथि को ही उस वर्ष ओर उस समय से आगामी भविष्य के लिए शुभ या अशुभ कर्मों ओर उसके फल के लिए प्राप्त होगा।ठीक यही आप सब पर लागू होता है और होगा भी,यो ज्योतिष में जन्म के दिन की अपेक्षा जन्म की वो तिथि ही मुख्य ओर विशेष प्रभावी होती है,इसे आपको अपने पाश्चात्य यानी विदेशी तारीख के भविष्य फल और भारतीय ज्योतिष के भविष्यफल को आजमा कर देखने से विशेष पता चलेगा।आप देखेंगे कि-जो पश्चिमी संस्कर्ति के अनुसार एक निश्चित दिन तारीख होती है,उस दिन आपके ऊपर पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभाव का अध्ययन करें और जिस जन्म तिथि को आपका जन्म हुआ है,उस दिन को आप पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करें।तब आपको खुद पता चल जाएगा कि,दोनों में कितना विशेष ओर भारी अंतर है।यो केवल अपनी जन्मदिन की एक निश्चित होने वाले दिन को ही जन्मदिन मनाने की परंपरा देखने और लोगो मित्रों को याद रखने में आसान लगने से आपको अच्छा प्रभाव दिखाएगी।वो भी जन्म समय की अपेक्षा केवल रात के 12 बजे जन्मदिन की शुभकामना देना आपको सामाजिकता से उचित लगते हुए,विशेषकर आध्यात्मिकता ओर आपके भविष्यफल आदि के लिए उचित नहीं है।कहने को कह सकते हो,की अरे लोगो की दुआ तो मिल ही रही है।दुआ ही तो चाहिए और क्या?ये 12 बजे वाला रात्रि समय को दिए सन्देश की परंपरा,असल मे जिनका जन्म समय नहीं मालूम है,ओर अगला दिन को जन्मदिवस पर किसी कारण समय पर व्यस्तता के चलते नहीं मिल पाएंगे,यजन्मदिन पर समल्लित नहीं हो पाएंगे,इन सब जैसे अनेक कारणों के बढ़ते दबाब से बना है।
पर सच्च में यदि आप अपने जन्मदिन को अपने जन्म की तिथि वाले दिन मनाये ओर विशेषकर जन्मतिथि को पडने वाले आपके जन्म के समय पर ही मनाये,तो बहुत ही फलदायी होगा,बेशक़ आप लोगो को आमंत्रित करें या न करें या उस समय नहीं आ पाए,कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है,हाँ जो आपके सच्चे हितेषी है,वे अवश्य ठीक उसी समय आपको अपनी दुआओं भरे संदेश अवश्य भेजेंगे ओर आपको रात्रि के12 बजे की अपेक्षा से भी ज्यादा लाभ भी मिलेगा,पर यदि उस समय देर सवेर के जन्म समय पर आप अपने बुजुर्ग ओर माता पिता और बन्धु को नमन ओर उनसे आशीर्वाद लें।और यदि ये नहीं हो,तो भी आप ठीक उस समय को अपनी पूजा अर्चना यज्ञ ओर विशेषकर ध्यान करे,ओर जो बने मन्दिर ओर गरीबों में जाकर बांटे।तब देखे अद्धभुत प्रभाव।उस पाश्चात्य दिन के हिसाब से मनाये गए जन्मदिन के प्रभाव को ओर तिथि के दिन मनाये गए जन्मदिन के प्रभाव को।
ये अवश्य ही अनुभव करें।
वैसे चाहे तो आप दोनों ही दिन मना सकते है।पर तिथि वाले दिन जन्मदिन मनाने का कोई जबाब नहीं है।ये मुझे अनेक समय अनुभव हुआ,पर भक्तो के चलते एक दिन निश्चित हो गया,जो मुझे कभी भी व्यक्तिगत रूप से फलदायी सिद्ध नहीं हुआ,कभी आनन्द नहीं आया।ये मेरा वर्षो का पक्का अनुभव है।जैसे 9 अप्रैल को मंगल पड़ा, मुझे बुखार रहा आदि आदि अनेक बातें रही।

जैसे मेरा जन्मतिथि के अनुसार जन्मदिन आज है-13 अप्रैल 2019 की चैत्र नवरात्रि की अष्टमी की प्रातः को…जो कि मेरे पैदाइश के जन्मदिन के पहले उस समय 9 अप्रैल को दिन शुक्रवार को चैत्र अष्टमी पड़ी थी,ओर तब मैं अपने खानदान में सबसे पहला और बड़ा पुत्र हुआ।और तब नवरात्रि की अष्टमी मनाने को परदादी स्व.नारायणीदेवी ने पंडित बुलाया था,वो कहती थी,की जैसे ही पण्डित यज्ञ कर्म को बनाने बैठा की,तुम्हारा जन्म हुआ और यज्ञ टल गया।और फिर मेने यानी स्वयं ने कभी यज्ञ होते नहीं देखा।ओर फिर आगे चलकर मेने ही महायज्ञ कराकर यज्ञ परम्परा का बड़ा रूप घर समाज को दिया।
ओर देखे आज 13 तारीख यानी 1+3=4,ये 4 अंक राहु का अंक है दिन शनिवार को पड़ी है।तो मुझ पर आज की 13 तारीख को पढ़ने वाली तिथि का ही विशेष प्रभाव पड़ेगा..जो कि पड़ा,यज्ञ करते तर्जनी उंगली दीपक ओर यज्ञ जलाते में हलकी सी तपिश खा गई,ओर मेरी पुरानी काली चप्पल टूट गयी।और शाम तो देखते है,की लोगो ओर भक्त जनों के साथ गद्दी पर कैसा दिन जाता है…यहाँ चप्पल की बात सुनकर कोई भी भक्त मेरे लिए चप्पल नही लाये,मै खुद आज खरीदूंगा।

यो मैंने आज शनिवार को 3 बजे उठकर यज्ञ करके शनि मन्दिर के बड़े दीपक ओर यज्ञ को प्रज्वलित करके,वहाँ के सेवक को चाय बनाकर देकर,फिर अपनी जीवित माता को नमन करके यज्ञ ओर ध्यान करके उसे मना रहा हूं।

यो आप भी इसका अध्ययन करें और भविष्य में अनुभव करके मनाये।

इस विषय पर इससे अधिक ओर भी अनुभव को कहकर ओर लिखकर विशेष लेख लिखूंगा।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Www.satyasmeemission.org

Post a comment